मराठा कोई जाति नहीं बल्कि अनेक जातियों का
भौगोलिक सांस्कृतिक नाम(पद) है :-
मधुसूदन राव होलकर
लेखक/संपादक/इतिहासकार
मं0नं0-28, शकरपुर खास,
दिल्ली-110092
मो0-09650126820
मराठा कोई जाति नहीं बल्कि कुणबी, धनगर व अन्य जातियों का भौगोलिक सांस्कृतिक नाम(पद) है | वर्तमान महाराष्ट को गठन 1 मई 1960 को सैंट्ल प्रोंविसीज , बरार और बोम्बे प्रेसीडेंसी को मिलाकर हुआ था | महाराष्ट् मुख्यरुप से खानदेश, कोंकण, मराठवाडा व विदर्भ के 34 जिलों को मिलाकर बना हैं | सनृ 2014 तक इसकी जनसंख्या 17853636 है |
वर्तमान में मराठा शव्द तीन प्रकार से प्रयोग किया जाता है | मराठी भाषा बोलने वाले मराठे, महाराष्ट् के रहने वाले मराठे, एक जाति जो अपने को 96 कुली मराठा कहलाती है, के रुप मे सम्बोधन किया जाता है | इस शब्द को समझने के लिए हमें इतिहास में जाना पडेगा | मानव असभ्य से सभ्य हुआ तो सबसे पहले उसने पशुपालन किया और कालान्तर में उसने कृषि कर्म को अपनाया | वे पशुधन पालने के कारण धनगर और कृषि कार्य करने के कारण कुणबी कहलाये | यही दो सबसे प्राचीन कबीले थे| आठ सौ साल मुस्लिम सुल्तानों, नवाबों व बादशाहों का राज रहा और उपके अत्याचारों के काले कारनामें इतिहास में भरे पडें है | उनके अत्याचारों से त्रस्त भारतीय लोगों ने अपने स्वाभिमान व धर्म की रक्षा के लिए सुदूर दक्षिण में जंगलों और पहाडों में जाकर शरण ली तथा उन्होंने भी पशुधन पालन व कृषि कार्य को अपनाया तथा वे भी धनगर और कुणबी कहलाने लगे | जिससे मूल धनगर और कुणबी वंशों में वृद्वि हुई | उन्हीं दो कबीलों से अनेक प्रसिद्व राजवंशों का उदय भी हुआ | दक्षिण में मौर्य, सेन्द्रक, राष्ट्कूट, चालुक्य,सिलाहार, यादव आदि वंश हुए है | मराठा शब्द से पूर्व में धनगरों में मौर्य राजवंश, देवगिरी के यादव, विजयनगर साम्राज्य, जिंजी का कोण राजवंश, पल्लव राजवंश, होयसल राजवंश, कदम्ब राजवंश, बनवासी राजवंश, कलेदी,बिदनूर, इक्कर, कृष्णागिरी, राष्ट्कूट(मान्यखेत), बारगल(तलोदा) इत्यादि हुए है |
उस समय मराठा शब्द प्रचलन में नहीं आया था, केवल दक्खन और दखिनी शब्द प्रयोग होता था | औरंगजेब का काल आते आते मराठा शब्द शत्रुओं द्वारा दक्खन के लोगों के लिए प्रयोग किया जाने लगा | बाद में उस क्षेत्र को मराठा क्षेत्र भी कहा जाने लगा | कुछ इतिहासकारों का मत है कि,” महाराष्ट् में रट्टा नामक जाति रहती थी | उनके वहां छोट छोटे कबीले थे | उन सभी को मिलाकर “महारट्टा” कहा जाता था | बाद में रट्टा जाति का कुछ पता नहीं लगता | संभवत: दखिन के राष्ट्कूट वंश की उत्पत्ति उसी से हुई हो | कुछ का कथन है कि,”महार” लोगों के कारण उस क्षेत्र का नाम “ महारट्टा” पडा |
इतिहासकारो का मत है कि छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में कुणबी(किसान) और धनगर(चरवाहा) जातियों के लोगों ने मिलकर मुगलों के विरुद्व लडाई लडी, तो अन्य लोगों खासकर मुगलों ने उन्हें
(2)
“ मरहटा“ कहा | उससे पहले यह नाम नहीं था | आम लोगों की राय है कि ,” मरहठा” का अर्थ शक्तिशाली होता है या तो सामने वाले शत्रु को मार डालता था या फिर वह स्वयं मर कर हटता था| इसीलिए उन्हें मर+हटा =मरहटा-मरहठा –मराठा कहा जाने लगा था |
मि0 आर0बी0 रसल और कर्नल टोन के अनुसार,” मराठा जाति कुणबी और धनगर से मिलकर बनी है |”(1) मि0 जे0 एच0 हट्टन के अनुसार,” मराठों का सबसे पहले उल्लेख् संभवत: 13वीं और 14वीं शताब्दी में मिलता है | 17वीं शताब्दी में उन्होंने एक योद्वा जाति के रुप में ख्याति पायी| 18 वीं शताब्दी मं यह करीब करीब सम्पूर्ण भारत के स्वामी ही बन गये थे | इनकी गिनती क्षत्रियों में होती हे जो किसानों और चरवाहों में से थे | वस्तुत: संकुचित अर्थो में मराठा एक ऐसे समाज को कहते है 1 जिनमें कुणबी, धनगर और अर्ध राजपूत है |“(2) फ्रांस के लेखक लुईस रुसले का कथन है कि,” मराठों का ज्यादातर भाग खेतीहर (कुणबी) और चरवाहों(धनगरो) का था | वे अपने जन्म स्थान से संबंधित प्राकृतिक पहाडी निवास स्थानों कं मध्य संतुष्ट थे | इसके कारण उनमें अत्याधिक गर्व और साहस था, जिसकी वजह से वे अपनी आजादी एवं स्वतंत्रता को बचाण् रखने में सफल रहे|” (3)
छत्रपति शिवाजी की अनेक गुरिल्ला टुकडियों का निर्माण धनगरों ने किया था| “ छत्रपति शिवाजी महाराज के विश्वासपात्र मावलों अथवा मराठों में अधिकांश धनगर जाति के वीरयोद्वा थे | मावल सेना में घाट, मावल और कोंकण प्रांत के रंगरुट भर्ती किये जाते थे | वहां के हटकर(धनगरों की एक उपजाति) जाति के सिपाही परम विश्वासी और पहाडी लडाई में बडें दक्ष होते थे | वे स्वयं अपने हथियार लाते थे | गोली, बारुद्व,बख्तर आदि लडाई का सामान राज्य देता था| वे लोग विलक्ष्ण लक्ष्य बेधक होते थे | पोशाक में जांघिया, कमरबंध और दुपट्टा रखते थे | मावाल प्रांत वाले प्राणों की बाजी लगाकर लडते थे | महाराणा प्रताप के जिस तरह भील सर्वस्य थे, उसी तरह छत्रपति शिवाजी के लिए धनगर अपना सर्वस्य बलिदान करते थे |”(4) मि0 आर0वी0 रसल लिखते है कि,” मराठा जाति सैंनि सेवा से अस्तित्व में आई है | यह कोई अलग जाति नहीं है | डफ ग्रांट ने लिखा है कि 15वीं 16वीं शताब्दी में बीजापुर और अहमदनगर के मुस्लिम सुलतानों के यहां सात परिवार निंबालकर, घारपुरे, भौंसला सैंनिक सेवा किया करते थे | उस समय वे कोई भी अपने को मराठा नहीं कहलाता था | पहली बार जब शिवाजी के गुरिल्लाओं ने औरंगजेब के विरुद्व लडाइयां लडी, तब यह मराठा नाम प्रकाश में आया”| (5) दरअसल मराठा कोई जाति नहीं बल्कि कुणबी, धनगर व अन्य जातियों का सम्मिलित नाम मराठा है | जोंकि औरंगजेब के काल में मुगलों द्वारा दिया गया नाम है|
“देवगिरी का शेणवां राजवंश धनगरों का था | उसकी स्थापना रामचन्द्र नामक एक धनगर ने 12वीं शताब्दी में की थी | उसी कुल में शिवाजी की माता जीजाबाई का जन्म हुआ था |”(6) इतिहासकार छत्रपति शिवाजी महाराज को कुणबी मानते है | लेकिन अनेक इतिहासकारो ने शोध व अध्ययन से यह सिद्व किया है कि शिवाजी धनगर थे |“दक्षिण में कोल्हापुर के पास जो पठार है, वहां बडी संख्या में धनगर मराठा निवास करते थे | जोकि भेड बकरियां पालते थे | उन्ही धनगरो में से बहुत से कुशल और वीर सैंनिक वंश उत्पन्न हुए| हिन्दू कुलभूषण छत्रपति शिवाजी महाराज धनगर समाज में पैदा हुए थे| “(7) श्री रामचन्द्र ढेरे और श्री सिराजू काटकर जैसे इतिहासकारों ने भी छत्रपति शिवाजी को धनगर सिद्व किया है |”(8)
(3)
उसी प्रकार ग्वालियर के शिन्दे को कुणबी कहते है | “लेकिन उनके बारे में धनगर भी लिखा मिलता है |”(9) इंदौर की महारानी देवीश्री अहिल्याबाई होलकर अहमदनगर के चौंडीगांव के पटेल धनगर मनकोजी शिन्दे की पुत्री थी |उसी प्रकार बडौदा के गायकवाड को कुणबी लिखा है तथा “अनेक लेखकों ने उन्हे धनगर भी लिखा है |”(10) बडौदा में महाराज के वंशज गायों को बाडे में रखने के कारण गायकबाड कहलाते थे |इंदौर का होलकर राजवंश स्पष्टत: धनगरों का था |
छत्रपति शिवाजी महाराज के धनगर सरदार :- निंबाजी पाटोला,बलवंतररव देवकाते, धनोजी शिंगाडा, मणकोजी धनगर, गोदाजी पांढरे, हिरोजी शेलके, व्यंकोजी खांडेकर, भवाणराव देवकाते, येशाजी थेराट, इन्द्राजी गोरडं, दादाजी काकडे, अगदोजी पांढरे,बनाजी बिरजे, संभाजी पांढरे, नाईक जी पांढरे इत्यादि के अतिरिक्त मराठा सेना में देवकाते ,कोलेकर, काले, मासाल, खरात, पाटोले, फणसे,डांगे, बरगे, गरुड, बने, पांढरे, बडंगर, कोकरे,आलेकर, हजारे, शेलके,खताल, टकले, काकडे, हाके, भानुसे, आगलावे, बहादुर राजे, शेंडगे, गोपडे, धायगुडे, मदने, सलगर, माने, बारगल, गाडवे, रुपनबर,सोनवलकर,बाघे, मोकाशी, चोपडे, बाघमोडे, शिन्दे, लाम्भाते, पुगकर, बुले, शिंगाडे, महार्नवर, गलांडे, बाघमारे,बहाड, धाईफोडे, इत्यादि |
इनके अतिरिक्त अनेक मराठा रियासतों इंदौर, ग्वालियर, धार ,देवास, पुणे, कोल्हापुर, सातारा आदि की मराठा सेना में बहुत बडी संख्या में धनगर सैंनिक थे ! “पानीपत सन 1761 ई0 में मराठा सेनापति सदाशिव राव भाउ ने एक सभा के दौरान चिल्लाते हुए कहा – बेकार मराठा सेना में 33% प्रतिशत धनगरों को रखा हुआ है | मल्हार राव होलकर जी आप भी तो एक धनगर हो | सूरजमल जाट एक जमींदार है | गंवार तथा जमींदार विकसित युद्वकला से अनभिग है |”(11 इससे यही सिद्व होता है कि मराठा सेना में बडी संख्या में धनगर थे | पानीपत में सदाशिव राव भाउ की धर्मपत्नी पार्वती बाई और अन्य महिलाओं की सुरक्षा का दायितव साहसी, फुर्तीले व चालाक पांच सौ धनगरों को सौंपा गया था |
मराठा शब्द का उल्लेख् करऐ हुए जैनिज्मस 598 फोलो एरस में लिखा है, “मराठा
शब्द का प्राचीन प्राकृत शब्द महारट्टा है | यह एक भौगोलिक नाम (पद) है, जोकि महाराष्ट् के सभी लोगों के लिए प्रयोग होता था | लेकिन बाद में यह शब्द सभी योद्वाओं के लिए महाराष्ट् में प्रयोग होने लगा | राजा शिवाजी दखिन के महान योद्वा ने, वहां के सभी लोगों को बिना क्षेत्र और जाति के शत्रुओं के विरुद्व लडने का अवसर दिया | इसलिए प्रत्येक एक मराठा था | वे सारे सैंनिक आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे | इसलिए वे सभी मराठे थे | आज से लगभग 80 वर्ष स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट यदि आप देखे तो उसमे आपको लिखा मिल जाएगा | मराठा सुतार, मराठा सुनार, पारिट मराठा, लौहार मराठा, कुणबी मराठा, धनगर मराठा इत्यादि|”
वास्तव मराठा शब्द स्वाभिमान व वीरता के प्रतीक के रुप में प्रयोग किया जाता था | मराठा प्रदेश के रहने वाले सभी लोग मराठा कहलाते थे | मुस्लिम बादशाहो,सुल्तानो व नवाबों के अत्याचारों से त्रस्त जनता शिवाजी के नेतृत्व में एकत्रित हो गयी और एक जन आन्दोलन खडा हो गया | उनमें कुणबी, धनगर, कोली, कायस्थ, ब्राह्मण इत्यादि जातियों का नाम उल्लेखनीय हैं | उन सभी को शिवाजी महाराज ने एक लडाकू योद्वा बना दिया | मुगलों ने उस काल में उन्हें वीरता व पराक्रम के कारण (मर कर या मार कर हटने कारण्) मर+हटा= मरहठा-मराठा कहा |
(4)
छत्रपति शिवाजी की सेना में प्रभू(कायस्थ) जाति के सात सेनाध्यक्ष और मंत्री थे| उनमें से मुरारजी देशपांडे और बाजी प्रभू देशपांडे थे | बालाजी आवजी,शिवाजी महाराज का सचिव पद पर थे | वे मराठा साम्राज्य के मुख्य विचारक(Major Think Tank) थे | यह सभी मराठा कहलाते थे |
उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लडने वाले कोली जाति के लोग थे | उनका कहना है कि शिवाजी महाराज के प्रधान सेनापति और कई अन्य सेनापति कोली जाति के थे | मराठा इतिहास में मुख्यत: मवालियों और कोलियों से भरी शिवाजी की सेना का शौर्य का गौरवपूर्ण वर्णन है | छत्रपति शिवाजी महारज के सेनापति तानाजी मालसुरे कोली जाति के वीर योद्वा थे | जिन्हे शिवाजी मेरा शेर कहा करते थे |“गढ आला पण सिंह गेला” कहावत उन्हीं का एक प्रसंग है | शिवाजी का जो समुन्द्री बेडा था | उसमें कोली जाति के सैंनिक थे और वे सभी मराठा कहलाते थे |
उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में और बाद में अनेक ब्राह्मण सेनापति भी थे | उनमें दादा कोंडदेव, बालाजी विश्वनाथ पेशवा, बाजीराव पेशवा, रघुनाथ राव पेशवा, नाना साहब, गंगाधर राव इत्यादि प्रमुख है और वे सभी मराठा कहलाते थे |
ऐसे अनेक उदाहरण मराठा इतिहास में भरे पडे है | स्वतंत्रता से पूर्व मराठा प्रदेश के रहने वाले सभी मराठा कहलाते थे | सत्यता यही है कि मराठो में अधिकतर संख्या कुणबियों और धनगरों की थी | क्योंकि यही सबसे प्राचीन कबीले थे | समय और काल के थपेडों में कुछ राजपूत व अन्य लोग भी उनमें जा मिलें| उससे मूल कुणबी और धनगर वंशो में और वृद्वि हुई | जब कुणबी और धनगरों ने सैंनिक जीवन अपना लिया तो वे बडे बडे सेनापति, सरदार, जागीरदार, वतनदार व देशमुख बन गये | तक वे अपने को मराठा कहलाने लगे तथा जो कृषि व पशुपालन के पेशे से जुडे रहे, वे कुणबी और धनगर कहलाते रहे | शिवाजी से पूर्व में निंबालकर, घारपुरे, भौंसला, चव्हाण, पंवार, सोलंकी, सूर्यवंशी बीजापुर और अहमदनगर के सुल्तानों की सेवा में थे | जब शिवाजी और उनकी सेना को मुगलों के काल में मराठा नाम से सम्बोधित किया जाने लगा तो उन लोगों ने भी अपने को मराठा कहलाना शुरु कर दिया | बाद में वे राजपूत मूल दिखलाने के लिए राजपूत वंशो से अपनी निकासी दिखलाने लगे | उसका उदाहरण शिवाजी महाराज थे | जब उनको राजा बनाकर राजतिलक करने की बारी आई | तो महाराष्ट् के ब्राह्मणों ने उनका यह कहकर राजतिलक करने से मना कर दिया कि शिवाजी की जाति का पता नहीं है और वह क्षत्रिय भी नहीं है | अन्त में शिवाजी की झूठी वंशावली लिखवाई गई और उनकी निकासी चित्तौड के शिशोदिया वंश से बतलाई गयी तथा काशी से एक गरीब ब्राह्मण गंगाभट को लाकर उनका राज्याभिषेक करवाया गया तथा उन्हें छत्रपति की उपाधि से विभूषित किया गया तथा उसे मालामाल कर दिया गया|
आजादी से सौ डेढ सौ वर्ष पहले ऐसे लोगों के 96 कुल एकत्रित हो गये और उन्होनें अपने को 96 कुली मराठा कहलाना शुरु किया तथा बाकी लोग कुणबी मराठा, धनगर मराठा, प्रभू मराठा, ब्राह्मण मराठा इत्यादि कहते रहे |धनगर और96 कुली मराठा कहलाने वाले लोगो के ज्यादातर उपनाम(आढनॉव) भी एक से हैं| जैसे पंवार ,चव्हाण, सोलंकी, गहलोत, चंदेल, राठौड, शिशोदिया, तंवर, जादव,घाटगे, भौंसले, गावडे, बनसोड,माने, मोरे, शिन्दे,लोखंडे, महाडिक,घोरपडे, थोराट,गायकबाड,चालुक्य, सावंत इत्यादि | इससे यही सिद्व होता है कि मराठों में ज्यादातर भाग धनगरो का था |
(5)
जाति की हैसियत से ब्राह्मण अपने को सबसे उचां मानते थे | इसलिए मराठा शब्द को सबसे पहले ब्राह्मणों ने छोडा और वे अपने को मराठा कहलाना बंद कर दिया तथा वे केवल ब्राह्मण कहलाने लगे| आजादी के पश्चात जब मराठा प्रदेश का नाम महाराष्ट् हो गया और भारत का संविधान बना तो अनेक जातियों को सामाजिक ,आर्थिक रुप पिछडी होने के कारण आरक्षण दिया गया | अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सन 1990 में अन्य पिछडा वर्ग बनाकर आरक्षण दिया गया | आजादी के पहले सभी जातिया अपनी मूल जाति के साथ मराठा शब्द का प्रयोग करती थी, क्योंकि आरक्षण में जातियों की सूची में मराठा, खासकर 96 कुली कहलाने वाले को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिणिक व राजनैतिक रुप से सक्षम होने के कारण मराठा शब्द को आरक्षण की परिधि से बाहर रखा गया | उसके कारण ही जो जातिया आजादी से पहले कुणबी मराठा, धनगर मराठा, कोली मराठा, लौहार मराठा, सुनार मराठा इत्यादि का प्रयोग करती थी,उन्होनें मराठा शब्द का प्रयोग बंद कर दिया और वे केवल कुणबी, धनगर,सुनार, सुतार आदि लिखले लगी | क्योंकि मराठा लिखने से उनका जाति प्रमाण पत्र नहीं बनता था | इसका उदाहरण लेखक ने स्वयं इंदौर के एक जागीरदार घराने के व्यक्ति से सुना है | उन्होनें 1992 ई0 में जब ओ0बी0सी0 का प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आवेदन किया तो डिस्टीक मेजिस्टे्ट ने यह कहते हुए आवेदन निरस्त कर दिया कि आपके पिताजी के स्कूल प्रमाण पत्र में जाति धनगर मराठा लिखी हुई है1 बाद में किसी तरह मराठा शब्द पर पानी डालकर मिटाने के बाद बडी मुश्किल से उनका जाति प्रमाण पत्र बन पाया | आजादी से पूर्व महाराष्ट् में अनेक सामाजिक संस्थाओं के नाम क्षत्रिय धनगर मराठा के नाम से बनी हुई थी | आजादी के बाद सभी ने लाभ लेने के लिए मराठा शब्द हटा दिया |
इस समय सन 2014 ई0 में महाराष्ट् की कुल जनसंख्या 117853636 है | जिसमें एस0सी0 में 59 जातिया हैं और उनको 13% आरक्षण दिया हुआ है | एस0टी0 में 47 जातिया है और उनको 7% आरक्षण दिया हुआ है | ओ0बी0सी0 में 346 जातिया हैं और उन्हें 19% आरक्षण दिया हुआ है | एस0बी0सी0 में 7 जातिया है और उनको 2% आरक्षण दिया हुआ है | वी0जे0(विमुक्त जाति) में 14 जातिया है और उन्हें 3% आरक्षण दिया हुआ है | बाद में एक और सूची भटक्या जाति की बनाई गई | जिसे NT कहा जाता है | पहले ये जातिया OBC में सम्मिलित थी | NT-B- में 28+7 जातिया है और उन्हें 2.5% आरक्षण दिया गया है | NT-C में एक जाति धनगर, उसे 3.5% आरक्षण दिया गया है | NT-D में एक जाति है वनजारी, उसे 2% आरक्षण दिया गया है | उपरोक्त आरक्षण52% हो जाता है |
आजादी से पहले ये जातिया अपने को ब्राह्मण व क्षत्रिय सिद्व करती थी | आजादी के बाद आरक्षण का पता लगा तो सभी जातिया लालायित होकर उसे प्राप्त करने के हथकंडे अपनाने लगी | जो जातिया आजादी से पहले पीछे थी, वे आरक्षण के बल पर आगे निकल गई है | भला इस दौर क्षत्रिय और ब्राह्मण कहलाने वाली जातिया भी चुप कैसे बैठती| कुछ ने तो OBC में घुसकर आरक्षण प्राप्त भी कर लिया है | हम कर रहे है महाराष्ट् की बात | वहां अभी हाल में मराठों (96 कुली) को 16% आरक्षण दिया है और उनका कहना है कि उनकी आबादी 33% है | हम कुछ जनसंख्या के आकडे देखते है :-
ब्राह्मण(1931)–914757, माली(1931)-705799,मराठा(1931)-5245040, कुणबी(1931)-2116500, वीरशैव लिंगायत(1931) -316225, भरवाड(1931) -409935, मंग(1981)-1211335, चंभार(2001)-123487, वंजारा(2014)- 9 लाख,
सन 1931 में मराठा और कुणबी की सम्मिलित जनसंख्या 7712030 लिखी है |
(6)
सन 1881 ई0 में महाराष्ट् में धनगर समाज की जनसंख्या
सन 1881 ई0 मे बम्बई प्रातं में धनगर
(शोलापुर- 59727)
(सातारा - 41547)
(अहमदनगर - 39527)
(पूना - 34648)
(कोल्हापुर - 38326)
(सातारा की जागीरों में - 33295) = 247070
सन 1881 ई0 में खानदेश में धनगर
(धुले, नंदुर्बार,जलगांव,चालीसगांव,भुसावल -27743)
(मराठा सरदारी में धनगर - 39578) =67321
सन 1881 ई0 में बरार में धनगर - =74559
(वर्तमान विदर्भ-अमरावती, अकोला,बुलडाना, यवतमाल)
सन 1881 ई0 में मध्य प्रांत में धनगर - =21441
(नागपुर,वर्धा,चांदा)
सन 1881 ई0 में ब्रिटिश शासित बम्बई में धनगर- =473167
सन 1881 ई0 में जागीरदारी राज्य बम्बई में धनगर- =118393
सन 1881 ई0 में रत्नागिरी- सावंतवाडी में धनगर- =18505
सन 1871 ई0 में कोलाबा में धनगर - =10875
सन 1872 ई0 में नाशिक में धनगर - =12837
सन 1872 ई0 मे अमरावती में धनगर - =17826
कुल जनसंख्या = 1060994
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सन 1901 ई0 में सातारा के जिलों में धनगर- = 467622
सन 1901 ई0 में कोल्हापुर में धनगर- = 36000
सन 1901 ई0 में मध्य प्रांत में धनगर- = 196000
सन 1901 ई0 में यवतमाल में धनगर- = 14000
कुल जनसंख्या = 713622
सन 1931 ई0 में बोम्बे में धनगर = 778876
सन 1931 ई0 में बरार में धनगर = 74074
सन 1931 ई0 में सैंट्ल प्रोविंसीज में धनगर = 20490
सन 1931 ई0 में यूनाइटीड प्रोविंसीज में धनगर = 1680
सन 1931 ई0 में सैंट्ल इण्डिया में धनगर = 10361
कुल जनसंख्या =885480
(7)
यह कितनी विडम्बना है कि आरक्षण का आधार सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिणिक होता है | लेकिन वर्तमान में सभी बातों का राजनैतिक करण हो जाता है| अभी हाल में लोकसभा चुनाव 2014 महाराष्ट् में कांग्रेस और एन0 सी0पी0 को पराजय को मुंह देखना पडा है | अक्तूबर 2014 में महाराष्ट् में विधान सभा के चुनाव होने वाले है | मराठा समाज कांग्रेस व एन0सी0पी0 का परम्परागत वोटर रहा है | आगे के संभावित भय से यह दोनो दल आशंकित है | इसलिए इन दोनों दलों ने सामाजिक आर्थिक व राजनैतिक रुप से सक्षम मराठा (96 कुली)को अपनी तरफ रखने के लिए 16% आरक्षण दिया है | जबकि महाराष्ट् राज्य बनने के बाद अब तक वहां 16 मुख्यमंत्री बने है , जिनमें से 10 उसी समाज के बने है | महाराष्ट् लोकसभा की 48 सीटों में उनके हमेंशा 36 से लेकर 38 सांसद और विधान सभा की 288 सीटों में से 160 से लेकर 180 तक विधायक उनके ही बनते है |आज भी उनके अनेक विधायक है | जमीन से लेकर उद्योगों, नौकरियों पर उसी समाज का कब्जा है | तो भला यह समाज कहां से पिछडा है | आजादी के बाद 65 वर्षों में आज तक उनके 60 मंत्री और 90% विधायक हुए है | जमीन उनके पास 100% है | शिक्षित 50% है | सहकारी बैंकों में वे 100% हैं | शिखर बैंक(कोआपरेटी) में 100% हैं | पंचायत समितियों में 90% वही हैं | ब्रिटिश काल में सर, राव, राय, दीवान जैसी उपाधियां उनके पास ही थी | कुणबी और धनगर व अन्य समाज उनको आरक्षण दिये जाने का शुरु से विरोध कर रहा है| उनका यही कहना है कि मराठा कोई जाति नहीं हैं | महाराष्ट् में पहले ही52% आरक्षण है | 16% इस वर्ग को आरक्षण दे दिया गया है | क्या 52% से ज्यादा आरक्षण दिया जा सकता है| यह सोचनीय विषय है | सत्ता के गलियारे में मराठा समाज के राजनेता श्री नारायण साने ने आनन फानन में मराठों को पिछडा दिखलाने के लिए फर्जी रिपोर्ट तैयार की और मराठों को सामाजिक,आर्थिक रुप से पिछडा सिद्व कर दिया तथा उनकी जनसंख्या का प्रतिशत 33% बतलाया | यह झूठ के आंकडे हो सकते है | इस पर विश्वास नही किया जा सकता |
सन 1931 ई0 मे मराठा कहलाने वालों की जनसंख्या – 5245040 थी | जिसकी सन 2014 ई0 तक 36 वर्ष में दोगुना के हिसाब से 21562942 बनती है |
सन 1931 ई0 = 5245040
सन 1967 ई0 x 36 = 10490080
सन 2003 ई0 x 36 = 20980160
सन 2014 ई0 x 11 = 21562942
यदि हम उपरोक्त जनसंख्या में से 2200000 लाख की मृत्यु दिखाकर कम कर देते है तक भी मराठा समाज की जनसंख्या =19362942 बनती है और उनका 16% बनता है |
सन 1931 ई0 में कुणबी समाज की जनसंख्या =2116500 थी |
सन 1931 ई0 x 36 = 4233000
सन 1967 ई0 x 36 = 8466000
सन 2014 ई0 x 11 = 11052826
यदि हम उपरोक्त जनसंख्या में से 2200000 लाख की मृत्यु दिखाकर कम कर देते है तक भी कुणबी समाज की जनसंख्या =8852826 बनती है और उनका 7.5% बनता है |
(8)
पिछले पृष्ठ पर हमने धनगर समाज की जनसंख्या का वर्णन किया है| हम उसमे से केवल सन 1881 ई0 में धनगर समाज की जनसंख्या 1060994 ही लेते है तो
सन 1881 ई0 = 1060994
सन 1917 ई0 x 36 = 2121988
सन 1953 ई0 x 36 = 4243976
सन 1989 ई0 x 36 = 8487952
सन 2014 ई0 x 25 = 14354577
यदि हम उपरोक्त जनसंख्या में से 2200000 लाख की मृत्यु दिखाकर कम कर देते है तक भी धनगर समाज की जनसंख्या =12154577 बनती है और महराष्ट् की कुल जनसंख्या का 10.3% बनता है |अभी हमने इसमें महाराष्ट् के अनेक जिलों की जनसंख्या नहीं जोडी है |
एक आकडे के अनुसार महाराष्ट् की कुल जनसंख्या का प्रतिशत :-
एस0सी0/एस0 टी0 - 17%
अन्य पिछडा वर्ग - 49%
मराठा - 13%
धनगर - 11%
ब्राह्मण - 3%
मुस्लिम - 7%
कुल प्रतिशत = 100%
अव सवाल यह उठता है कि महाराष्ट् की रिपोर्ट में केवल मराठो को 33% जनसंख्या बतलाई गई है | जोकि असत्य है | जबकि मराठा 13% है | उन्हें16% आरक्षण दिया गया है | धनगर समाज की जनसंख्या 11% है तो उन्हें3.5% आरक्षण दिया हुआ है | जबकि उन्हे कम से कम 11% आरक्षण दिया जाना चाहिए | यदि मराठो को आरक्षण देना ही है तो 16% क्यों | एक तरफ तोOBC में 346 जातिया को 19% और SBC में 7 जातियों को 2% आरक्षण दिया गया है| यह कैसा न्याय है | किसी भी तरह केवल मराठों को 16% आरक्षण देना अनुचित ही नहीं , अन्याय की बात है | इसलिए यह विषय बोम्बे हाईकोर्ट में पहुंच चुका है | यदि सरकार मराठों को आरक्षण देना ही चाहती है तो अन्य पिछडा वर्ग के अन्तर्गत उन्हें आरक्षण दें और OBC का 27% का दायरा बढाएं | वहां अन्य पिछडा वर्ग में सरकार को तीन स्तर बनाने चाहिए :- (1)सामान्य पिछडा वर्ग (2) विशेष पिछडा वर्ग (3) अति पिछडा वर्ग, बनाकर सभी को न्याय दिया जा सकता है | नहीं तो पहले भी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिणिक स्तर पर असमानता थी और वर्तमान में बनी रहेगी| भारत सरकार का यह नारा सभी का साथ, सभी का विकास, यह नारा खोखला साबित होगा | कोई देश तभी महान बन सकता है , जब सभी उन्नति करें | जब सभी की बराबर भागेदारी, सभरी को बराबर सामाजिक,आर्थिक शैक्षिणिक व राजनैतिक हिस्सेदारी मिले| वर्ना तो मेरा भारत महान है ही |
संदर्भ्:-
(1)Trilbes and Castes of the Central Provinces in India(1916), Vol-4, Page No.201
(9)
(2 )Tribes and Caste-R.V. Russell, Page 20
(3)Hindustan Times, New Dellhi, 12 November, 2009, Page No.10, Samar Halarnkar (4)इंदौर स्टेट गजेटीयर-के0सी0 लायर्ड- व्लूम-2, p—54, Ethnography-Castes & Tribes(1912)- Sir Athelistance Bains-Page No130, The Tribes and Castes of Bombay- R. E. Ethoven-Vol-I-P-321(1920), Gazetteer of Bombay Presidency- Poona, The Tribes and Castes of the Central Provinces of India- Vol-III- Page Noo 205- R.V. Russell(1916),महारथी मराठा अंक(1927)-वि0 चतुर्वेदी-पृ- 47 , मराठा साम्राज्य का उदय और अस्त- नांदकर्णी- पृ-84 )
(5)Tribes and Castes of the Central Provinces of India-Vol.III- R.V. Russell(1916)-Page No. 199
(6)Asiatic Journal and Monthly Register for British and Foreign India(1827)- Pag-355
(7)हमारा समाज- डा0 श0सिं0 शशी-पृ-103 , कुरुबार चरित्रृ- हनुमन्तैया, शब्द का भविष्य- डा0 राजेन्द्र यादव- पृ0-37
(8)शिखर सिंगनापूरता शंभू महादेव(मराठी), शिवाजी मूल कन्नड नेला(कन्नड)
(9)हिंदी शब्द कोश- चुतर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा-पृ-175- दारागंज प्रयाग-1914,साप्ताहिक हिन्दुस्तान-9 अगस्त 1987- राजेश्वर प्रसाद नारायणसिंह- पृ- 29ए ईवनिंग प्लस – समाचार पत्र- जयपुर- 23 अप्रैल 2004 |
(10)स्व0 सयाजीराव गायकवाड बडौदा लोक समर्पित पुरुषार्थी महाराजा- दिव्य भास्कर दैनिक- 6 दिसम्बर 2004- सुश्री रजनी व्यास, टे्वल्स इन वैस्टर्न इंडिया कर्नल जेम्स टाड –पश्चिमी भारत की यात्र- अनुवादक गोपल नारायण बहुरा-पृ-224)
(11)Battle of Panipat-Col. Gulcharan Singh- P-91, Maratha and Panipat- H.R. Gupta- p-281,बृजेन्द्र बहादुर सूरजमल जाट- उपेन्द्र नाथ शर्मा-पृ-394, इंदौर राज्य का इतिहास-सु स भण्डारी-पृ-23
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